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तमनार। क्षेत्र का आमाघाट–दान्द्री–लालडीपा मार्ग आज भी उपेक्षा और बदहाली की कहानी कह रहा है। जिस रास्ते पर पहुँचते ही लोक निर्माण विभाग (PWD) के इंजीनियर तक थककर पसीना-पसीना हो जाते हैं, उसी मार्ग से आज भी गांव के बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएँ रोज़ाना आने-जाने को मजबूर हैं। हाथी प्रभावित घने जंगलों से होकर गुजरने वाली यह पगडंडी न केवल ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि उनकी रोज़मर्रा की जिंदगी को भी कठिन बना रही है।
गांव वालों की यह मांग कोई नई नहीं है। बीते एक दशक से अधिक समय से ग्रामीण लगातार इस मार्ग के निर्माण की गुहार लगा रहे हैं। प्रशासन से लेकर शासन तक हर दरवाज़े पर दस्तक दी गई, ऑनलाइन आवेदन से लेकर विभागीय मांग पत्र और प्राक्कलन रिपोर्ट तक भेजी गईं, मगर नतीजा आज तक “शून्य” ही रहा।

यह स्थिति बेहद चिंताजनक और विचारणीय है कि अपनी बुनियादी ज़रूरत—एक सड़क—के लिए भी गांव वालों को भिखारी की तरह हाथ फैलाना पड़ रहा है। विकास के दावे करने वाले तंत्र के सामने ग्रामीणों की पुकार अब भी अनसुनी है।
गांव वालों की पीड़ा यही है कि—
“क्या अपने हक की मांग करना भी अबखैरात मांगने जैसा हो गया है? क्या सड़क जैसी बुनियादी सुविधा पाने के लिए हमें पीढ़ी दर पीढ़ी इंतज़ार करना होगा?”